सांवली और स्याह रंगत वाली लड़कियों को गोरेपन की क्रीम बेचने वाला बाला [आयुष्मान खुराना] जब स्टेज पर अचानक यह कह उठता है कि हमें बदलना क्यूं है, तो सब उसे देखते रह जाते हैं। अब तक तथाकथित पैमानों के मुताबिक बदसूरत मानी जाने वाली लड़कियों को सुन्दरता के सपने बेचने वाले बाला को सहसा सभी लड़कियों में बचपन की दोस्त लतिका दिखाई पड़ने लगती है। लतिका [भूमि पेडनेकर] का रंग सांवला है, लेकिन वह अपने रंग के साथ संतुष्ट और खुश है। वह किसी किस्म के झूठ का पीछा करने में यकीन नहीं रखती है।
वहीं, बचपन से शाहरुख खान के अंदाज में लड़कियों का दिल जीतने वाला बाला ख़ुद अब गंजा होता जा रहा है। कम होते बालों के साथ उसका आत्म – विश्वास भी गिरता जा रहा है। वह ख़ुद को आइने में देखने तक से हिचकता है।
फिल्म कई रोमांचक और हास्यास्पद मोड़ों से गुज़रती है। विजय राज की असरदार आवाज़ से शुरू होती हुई बाला कानपुर के कई मज़ेदार किस्से – कहानियों से आपको रूबरू करवाती है।
फिल्म में कई किरदार अपनी – अपनी असुरक्षा और डर में कैद जीते नज़र आते हैं। बाला को गिरते – झड़ते बालों का भय सता रहा है। बाला के पिता [सौरभ शुक्ला] दिन भर, यहां तक कि घर पर भी वह क्रिकेट यूनिफॉर्म पहने रहते हैं, जो उन्होने कई बरसों पहले रणजी मैच खेलते हुए पहनी थी। एक औरत है, जिसे लगता है कि उसका पति उसे छोड़ना चाहता है क्यूंकि वह मोटी होती जा रही है।
कानपुर में बसे कई किरदारों के ज़रिए बाला असल में यह कह जाती है – कि हम सब कितने तरह के झूठ, दिखावों और COMPLEX में जी रहे हैं। सांवली लड़कियां गोरी त्वचा पाना चाहती हैं। मोटे लोग छरहरा दिखने की कोशिशों में जुटे हैं। छोटे कद वाले लम्बे दिखना चाहते हैं।
सवाल यही है कि हम आख़िर क्यूं खुद को बदलना चाहते हैं? और जिस दिन बाला को यह बात समझ आती है, उसे नकली बालों की विग या टोपी नहीं पहननी पड़ती। दूसरे उस पर अब भी हंसते हैं, लेकिन अब वह भी उनके साथ ठहाके लगा लेता है।
बाला खुद पर हंसने का गुर सीख गया है, और खुद से प्यार करना भी।